Tuesday, January 24, 2012

यादें याद आती हैं...

समय जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, अपने पीछे यादें छोड़ जाता है। ये यादें कभी शिकायत, कभी नगमें तो कभी बातों के रूप में सामने आती हैं। और बात जब नगमों, बातों, शिकवों और वादों की हो, तो बरबस ही ध्यान उन रेडियो कार्यक्रमों पर चला जाता है, जिसने हमें अपनों से इसे साझा करने का मंच दिया। आज भले ही रेडियो का स्वरूप बदल गया है और यह बहुत हद तक एफएम चैनलों पर गीतों और विज्ञापनों तक सिमट गया है, लेकिन इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि पहले-पहल रेडियो ने ही हमें खबरों से लेकर मनोरंजन और दूर किसी अपने से यादों और बातों को साझा करना सिखाया। रेडियो से संबंधित इन्हीं यादों, बातों और गिले-शिकवों को साझा करने को कुछ रेडियोकर्मियों ने नाम दिया है- 'रेडियोनामा'।

इस ब्लॉग ने अपने साथ एक पंच लाइन जोड़ रखी है 'बातें रेडियो की... यादें आपकी', जो अपने आप में इस ब्लॉग पर उपलब्ध लेखों की बानगी पेश करता है। यह ब्लॉग इस मायने में मजेदार है कि यहां रेडियो से जुड़े कई जानी-मानी आवाजों को पढऩे का मौका मिलता है। यहां रेडियो स्टूडियो के  कई अनछुए पहलुओं को शब्दों में इस तरह पिरोया गया है कि क्षणभर के लिए ऐसा एहसास होता है मानों हम वहीं उनके साथ रेडियो स्टूडियो में मौजूद हों। एक ऐसे ही याद को साझा करते हुए एक रेडियोकर्मी लिखते हैं कि जब जगजीत सिंह की मृत्यु की खबर आई तो उनकी आंखों में आंसू थे, बावजूद इसके उन्हें यह खबर समाचारी लहजे में श्रोताओं तक पहुंचानी थी।

बहरहाल, यह ब्लॉग हमें भी रेडियो से जुड़ी अपनी यादें साझा करने का मौका देता है। शर्त बस इतनी है कि हम अपनी बात हिंदी में कहें। यहां हमें रेडियो जगत की जानी-मानी हस्तियों के साक्षात्कार को पढऩे और रेडियो जगत की बहसों से रूबरू होने का मौका मिलता है।


ब्लॉग का पता है-

राजस्थान पत्रिका के एजुकेशन सप्लीमेंट ' मी नेक्स्ट ' में दिनांक -15 जनवरी 2012  को प्रकाशित 

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