Tuesday, August 16, 2011

आज़ादी की खीर


आठ साल के बबलू को उसकी मां सुमिता ने आज अहले सुबह 5 बजे ही जगा दिया है। ना नुकुर करता बबलू अभी और सोना चाहता है। सुमिता उसे याद दिलाती है कि आज 15 अगस्त है। मां की बात सुनते ही बबलू झट से उठ जाता है। उसकी नींद 15 अगस्त का नाम सुनते ही छु-मंतर हो गई है। आधे घंटे में बबलू तैयार होकर मां के साथ अपने छोटे से तंबुनुमा घर से बाहर निकल आता है। बगल के स्कूल में सारें जहां से अच्छा... गीत बज रहा है। बबलू को यह सब बहुत अच्छा लगता है। तभी सामने के घर से जुम्मन चाचा अपने बेटे फारूक के साथ निकलते हैं। चाचा अपने हाथ में थामें झोले को खोलते हैं जिसमें सैकड़ों छोटे-छोटे प्लास्टिक के तीरंगे झंडे हैं।

रोज की जिंदगी से इतर आज का दिन बबलू के लिए खास है। आज उसे ट्रैफिक पर हाथ फैलाने की बजाय लोगों को झंडा बेचना है। वह और उसकी मां पिछले कई दिनों से इस दिन के लिए पैसें जमा कर रहे थें, ताकि झंडे खरीदकर वह उन्हें सडकों पर बेच सके। आज कमाई ज्यादा होगी। बबलू की मां ने आज दोपहर उसे खीर खिलाने का वादा किया है। 

बबलू और उसकी मां अपने घर के पास वाले चौराहे पर ही झंडे लेकर खड़े  हो जाते हैं जबकि चाचा अपने बेटे, जो बबलू से उम्र में 2 साल बड़ा है, के साथ शहर के मुख्य चौराहे पर गए हैं। चाचा हर रोज इसी तरह नयी चीजे लेकर बेचने निकलते हैं। करीब 15 मिनट के इंतजार के बाद सड़क पर हलचल बढ़ जाती है। रंग-बिरंगे और साफ-सुथरे कपड़ों में स्कूली बच्चों का दल प्रभात फेरी के लिए निकल चुका है। सड़क पर भीड़ बढ़ रही है। बबलू दौड़-दौड़कर लोगो को झंडे लेने के लिए प्रलोभित कर रहा है। कई बार पुलिस घेरे के अंदर घुस जाने पर उसे पुलिस वालों ने डंडे भी दिखाए, जिस पर वह हंसता हुआ वहां से भाग गया। इधर सुमिता का ध्यान झंडा बेचने के साथ ही बबलू पर लगा हुआ है। वह हर पल उसपर नजर बनाये हुई है। वह कई बार बबलू को डांटती भी है। वह कहती है, ‘क्या पता सड़क पर बेखबर दौड़ती गाडिय़ों से कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाए।’

करीब साढ़े तीन घंटे बाद, सड़क पर भीड़ अब कम हो चली है। सुमिता, बबलू से कहती है कि चल अब शायद कोई नहीं खरीदने वाला, घर चलते हैं। बबलू के हाथ में एक झंडा बचा हुआ है वह उसे बेच कर जाने की  जिद कर रहा है। मां उसके जिद के आगे लाचार है, तभी सामने से एक युवा दंपत्ति की गाड़ी ट्रैफिक पर रूकती है। बबलू अपनी मासूम आवाज में झंडे खरीदने को कहता है। इस तरह उसका आखिरी झंडा भी बिक गया। वह कूदते हुए मां को आखिरी झंडे के पैसे दिखाता है और घर चलने के लिए कहता है।

घर पर चाचा और फारूक अच्छी कमाई होने को ले उत्साहित हैं। मां खीर बना रही है। बबलू और फारूक बचे हुए कुछ झंडों से आजादी-आजादी खेल रहे हैं। दोनों सारे जहां से अच्छा... टूटे-फूटे लफ्जों में गा रहे हैं। खीर बन गया है। सुमिता बबलू को खीर परोसती है। खीर की खुशबु से बबलू का चेहरा खिला हुआ है। सुमिता खीर खा रहे बबलू को एकटक देख रही है। अचानक उसकी आंखों से आंसूओं की धारा बह निकलती है। उसका मन आज वापस गांव जाने को कर रहा है। 

आज सुबह स्कूली बच्चों को देख सुमिता को एक साल पहले गांव में अपने जीवन की याद आ गयी, जब वह 15 अगस्त को सुबह उठ बबलू को पड़ोस के सरकरी स्कूल के लिए तैयार करती थी। पर आज कुछ भी वैसा नहीं है। गांव के जिस जमीन पर वह काम करती थी उसे सरकार ने अधिग्रहित कर लिया है। वहां अब बड़े-बड़े मकान बनने हैं। उसका पति उन्हें छोड़ विदेश कमाने गया है। दो साल हो गए, उसकी कोई खोज-खबर नहीं है। गांव वाले कहते हैं कि वो किसी दुर्घटना में मर गया है, लेकिन सुमिता यह मानने को तैयार नहीं है। गांव वालों के उलाहने से परेशान सुमिता, बबलू को ले पास के शहर आ गई है... काफी कोशिशों के बाद भी काम न मिल पाने के कारण वह सड़को पर           हाथ फैलाने के लिए मजबूर है।....

बबलू के आवाज लगाने पर सुमिता का ध्यान टूटा। बबलू खीर खत्म कर चुका है। वह मां से उसके रोने की वजह पूछता है। सुमिता कुछ  नहीं बोलती है, बस अपने आंचल से आंसु पोंछते हुए बबलू को अपने सीने से लगा लेती है। मां के आंचल की गर्मी में बबलू अब सो चुका है और सुमिता दूर कहीं शून्य को निहार रही है।....


जनसत्ता समाचार पत्र के "समांतर" स्तंभ में दिनांक- 06 सितम्बर 2011 को प्रकाशित

9 comments:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति, बिना बनाव शृंगार के आज़ादी का एक और ही चेहरा दिखाने वाली पोस्ट।
    शुक्रिया स्वप्निल।

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  2. सराहना करने के लिए धन्यवाद गुंजेश भाई..

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  3. मेरे तरफ से एक ही शब्द ''शानदार''
    बलराम कृष्ण

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  4. बबलू की मां ने आज दोपहर उसे खीर खिलाने का वादा किया है।
    shirshak ko shandar tarike se kahani main buna gaya hai....accha hai....bahut accha hai....

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  5. मेरे दोस्त बहुत ही उत्तम कल्पनाशीलता है..................
    घटना के अनुसार शब्दों का चेतन जबरदस्त है.......

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  6. अच्छी पोस्ट.... उपन्यासकार बनने की राह पर हो स्वपनल बाबू

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  7. प्रसंशा के लिए..सभी मित्रों (बलराम, प्रवीण, देवेन्द्र और रोहित) को धन्यवाद !!

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  8. har kisi ki kahani hoti hai... and I think, her kisi ki zindagi me Bablu aur Sumita ka kirdar bhi hota hai.

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