Sunday, August 26, 2012

बंदी, उत्सव और हलवा डे


पिछले दिनों 15 अगस्त के लिए एक सॉफ्ट स्टोरी की दरकार थी, ऐसे में जयपुर के केन्द्रीय कारागृह जाना हुआ। किसी खास अवसर पर जेल की यह मेरी पहली यात्रा थी। इससे पहले स्कूल के दिनों में जेल देखने के लिए शौकिया तौर पर मंडल कारा, मधेपुरा भी जाना हुआ था। बहरहाल, अबकी जेल यात्रा से लौटकर यह स्टोरी तैयार की, जिसे 15 अगस्त के जस्ट जयपुर अंक में लीड स्टोरी बनाई गई। यह अलग बात है कि इस दौरान विज्ञापन की बाढ़ में इस  स्टोरी को भी एक अलग-सी चाहरदीवारी में सिमटना पड़ा। पूरी स्टोरी यहां साझा कर रहा हूं।

केंद्रीय कारागृह, जयपुर 
जेल, यह शब्द सुनते ही मन में एक अलग-सी धारणा बन जाती है। ऐसी जैसे इस चाहरदीवारी के अंदर कुछ भी अच्छा न होगा। कैद होगी, घुटन होगी, आंसू होंगे, सख्त कानून होंगे और न जाने क्या-क्या। लेकिन शहर के केन्द्रीय कारागृह में कुछ भी ऐसा नहीं है। हमारे सिनेमाई संसार ने भले ही परदे पर हमें जेल का ऐसा ही स्वरूप दिखाया, लेकिन यहां अंदर का माहौल किसी खुशहाल परिवार जैसा लगा। परिवार नहीं, तो कम से इसने बचपन के दिनों में स्कूली कैम्प की याद जरूर दिला दी। जहां हफ्तों तक अनुशासन और शिक्षकों की निगरानी में हम कुछ सीखने जाते थे। शिक्षा यहां भी मिलती है- भविष्य को बेहतर और अनुशासित बनाने की।
        यूं तो बंदियों के लिए इस चाहरदीवारी की हर सुबह सूर्योदय के साथ शुरू और सूर्यास्त के साथ बैरकों में बंद हो जाती है, लेकिन आज 15 अगस्त का दिन खास है। आज देश स्वतंत्रा की 65वीं वर्षगाठ मना रहा है। शरीर भले ही चाहरदीवारी में कैद हो, लेकिन मन में स्वतंत्र नागरिक की भावना और चेहरे पर स्वंत्रता का उत्साह इन बंदियों पर पिछले कई दिनों से दिख रहा है। 

खास है ये सुबह
वर्तमान में केन्द्रीय कारा के लगभग 2200 कैदियों के लिए 15 अगस्त की सुबह अन्य दिनों से बिल्कुल अलग होगी। वे इस दिन की तैयारी पिछले कई हफ्तों से कर रहे हैं। झंडोत्तलन, राष्ट्रगान, देशभक्ति से ओत-प्रोत संवादो के साथ आज का पूरा दिन नाटक और कुछ अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के नाम रहेगा। 

खूब जमेगा रंग
कारागृह में एक बड़ा हॉल है, जहां लगभग 700-800 लोगों के बैठने का स्थान है। सामने एक स्टेज है, जहां आज सांस्कृतिक कार्यक्रमों का दौर चलेगा। जेल का सांस्कृतिक विभाग और उससे जुड़े साथी कई दिनों से बंदियों के साथ मिलकर इस दिन की तैयारी कर रहे हैं। प्रशासन की ओर से उन्हें इसके लिए म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स, डेकोरेशन के साथ ही राजस्थान के पारंपरिक लिबास भी उपलब्ध करवाए गए हैं। कारागार के उप-अधीक्षक प्रमोद शर्मा बताते हैं कि यहां बंदियो की रचनात्मक अभिव्यक्ति  देखने को मिलती है, जो उनके प्रति सामाजिक धारणा को बदल कर रख देती है। 

स्पेशल है 'हलवा डे'
आज कारागृह में बंदियों समेत सभी को कुछ मीठा खाने को मिलेगा। साल में 26 जनवरी, होली, 15 अगस्त, दीवाली और ईद में यहां कुछ मीठा खाने का रिवाज है।  इसके तहत अंग्रेजों के समय से हलवा परोसने की प्रथा है। ऐसे में बंदी समेत जेल अधिकारियों को हलवे की मीठी सुगंध का खास इंतजार है। 

बड़े परदे का रोमांच
यूं तो कारागृह में टीवी पर फिल्म दिखाई जाती हैं, लेकिन आज का दिन विशेष है। हाल ही यहां बंदियों के लिए प्रोजेक्टर लगवाया गया है। जिस पर आज 'क्रांति' और 'शहीद' जैसी देशभक्ति फिल्में दिखाई जानी हैं। यानी बड़े परदे के साथ मंनोरंजन भी बड़ा होगा। 

ये भी बांटते हैं खुशियां
बंदियों के इस दिन को खास बनाने के लिए शहर के कई स्कूल और स्वयंसेवी संस्थाएं 15 अगस्त और इसके आस-पास जेल में कार्यक्रम का आयोजन करती हैं। इस दौरान मिठाइयों का दौर भी चलता है। 

सेलिब्रेशन भुलाता है गम
कारागृह के उप-अधीक्षक प्रमोद शर्मा बताते हैं कि  समाज से अलग समझने पर कैदियों को काफी ठेस पहुंचती है। जब कोई अपना उनसे मिलने नहीं आता, तो उनको अलगाव महसूस होता है। लेकिन जब सभी कैदी मिलकर स्वतंत्रता दिवस या अन्य उत्सव मनाते हैं, तो उनको यह कमी नहीं खलती और वे पूरा दिन हंसी-खुशी एक पारिवारिक आयोजन की तरह एकजुट होकर मनाते हैं। 

जज्बा देखते ही बनता है
कारागृह अधीक्षक ओटाराम  रोहिन ने बताया कि इस दिन कैदियों में अलग तरह का उत्साह देखने को मिलता है। भले ही उनके चेहरों पर आम दिनों में परिवार की याद और भविष्य की सोच की रेखाएं दिखती हों, लेकिन इस दिन चेहरे में रौनक दिखती है। वे कहते हैं कि  हम एक परिवार हैं और परिवार के साथ खुशियां बांटना किसे अच्छा नहीं लगता।   


(इस 'जेल यात्रा' के दौरान सहयोग के लिए सहकर्मी कंचन अरोड़ा जी का धन्यवाद।)  

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