Monday, November 1, 2010

केवल नीला नहीं है इसका रंग....


आजकल जसपाल बहुत चिंतित रहता है, उसके बच्चे त्योहारों की छुट्टियों में गाँव जाने की जिद्द लगाये बैठे है जसपाल की पत्नी परमजीत उसे समझाती है कि वह चिंता न करे वो बच्चो को समझा लेगी, लेकिन जसपाल कि चिंता यथावत बनी हुई है






आज से कुछ दो-ढाई महीने पहले ऐसा नहीं था जसपाल एक ब्लू-लाइन बस ड्राईवर है और पिछले चार सालों से 680 नम्बर कि बस चला रहा है जसपाल एक जिंदादिल और अपने परिवार के लिए जीने वाला इंसान है पिछले दो महिनों से दिल्ली में ब्लू-लाइन बसों के परिचालन को बंद कर दिया गया है। 1600 ब्लू-लाइन बसे बंद होने के बाद उनमे से 835 बसों को पिछले सप्ताह से चलाया गया है, पर इसमें जसपाल कि बस नहीं चल पाई एक तरफ जसपाल के बच्चे गाँव जाने कि जिद्द लगाये बैठे है और दूसरी तरफ जसपाल कि जेब खली है जो कुछ जमा पूंजी थी वो अब ख़त्म होने चली है जसपाल के लिए उसके बच्चों की ख़ुशी ही सबसे बड़ी ख़ुशी है
परमजीत बताती है कि जसपाल के बस मालिक ने बस न चलने के कारण पैसे देने से इंकार कर दिया है पिछले एक महीने से जसपाल छोटे-मोटे काम कर कुछ पैसे कमाता है, जो महीने के खर्च में ही ख़त्म हो जाती है परमजीत तब बहुत दुखी होता है जब जसपाल अपने बच्चो के सवाल पर दुखी हो जाता है और नज़र चुराने कि कोशिश करता है उसे डर है कि अब जब अगले कुछ दिनों में बच्चो के स्कूल में छुटियाँ होगी और उनकी गाँव जाने कि जिद्द बढ़ेगी तो वो उन्हें क्या जबाब देगी सन्नी जिसकी उम्र 7 साल है, वो तो कुछ समझदार भी है पर अमरप्रीत तो अभी महज़ 5 साल की है परमजीत वाहे गुरु से प्रार्थना करती है की जल्द ही बसे चलने लगे और उसका परिवार फिर से आपस में खुशियाँ बांटे
न जाने ऐसे कितने जसपाल और परमजीत है, जो पिछले दो-ढाई महिने से ऐसी कितनी समस्याओं से जूझ रहे है बात केवल 1600 बसों की नहीं है, यदि एक औसत आकलन करे तो इन 1600 बसों से लगभग 8 हजार पेट पलते है अगर यात्रीयों कि माने तो कटवारिया बस स्टॉप पर खड़े मनोज मिश्र जो एक निजी कंपनी में कार्यरत है मानते है कि, ब्लू-लाइन बसे निश्चित तौर पर बंद हो जानी चाहिए. क्यूंकि ये बसे बेहिसाब ढंग से सडको पर दौड़ती है और अक्सर राहगीर इसके शिकार बनते है वही मुनिरका स्टॉप पर खड़े सर्वेश कहते है कि यदि दिल्ली सरकार समुचित संख्या में बस चलाये तो ठीक है, वरना ब्लू-लाइन से हमारे पास विकल्प बढ़ते है और समय कि बचत होती है 
इस पर प्रदेश के परिवहन मंत्री का कहना है कि डीटीसी बसों कि खेप बढ़कर 6500 होने जा रही है, और जल्द ही नए चालक और परिचालक भी आने वाले है बसों को हटाने के संदर्भ में मंत्री जी का कहना है कि, मानता हूँ कि कुछ दिक्कते हो सकती है, लेकिन यह लोगो कि जान से कम किमती है
एक आमजन होने के नाते चाहे ब्लू-लाइन बसों के परिचालन को लेकर हमारी जो भी राय हो पर एक बात तो साफ़ है कि जिस तरह सरकार ने 14 दिसम्बर से बसों के परिचालन पर रोक लगाने का फैसला लिया है, उसमे जसपाल और उन 8 हजार लोगों की कोई सुध नहीं ली गयी है