Sunday, May 29, 2011

भाषा और व्यक्तित्व : क्या और कितना है संबंध

मनोवैज्ञानिकों से लेकर समाज वैज्ञानिकों तक में यह सवाल हमेशा से प्रबल रहा है कि क्या भाषा हमारे व्यक्तित्व पर प्रभाव डालती है?  इस विषय से संबंधित शोध निष्कर्षों ने यह साबित किया है कि हमारी भाषा का हमारे व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव रहता है। यह ना सिर्फ हमारे बोलचाल बल्कि हमारे सोचने के तरीके को भी तय करती है।
    भाषा असल में हमारे आपसी संचार में सबसे प्रभावी तत्व है, इसके बिना हम सफल संचार की  कल्पना तक  नही कर सकते। ऐसे में जब हम किसी भाषा को सीखते हैं तो इसके साथ ही हम उस भाषा से संबंधित संस्कृति और परंपराओं को भी ग्रहण करते हैं। उदाहरण के लिए हम जिस किसी क्षेत्र में रहते हैं, बोली बोलते हैं तो धीरे-धीरे हमारी चाल-ढाल और हमारा आचरण भी उसी क्षेत्र विशेष की तरह हो जाता है। विचार किजिये  कि जब हम कार्यालय या किसी अन्य जगह पर अंग्रेजी का प्रयोग कर रहे होते हैं तो ऐसे स्थानों पर हमारे पहनावे से लेकर हमारे तौर-तरीको में भी अंग्रेजीयत झलकती है, वहीं जहाँ हम राजभाषा हिंदी का प्रयोग कर रहे होते हैं तो वहां हमारे आचरण और विचारों में थोड़ी सौम्यता आ जाती है, हम अपने से बड़ो के लिए आप आदि जैसे शब्दों का प्रयोग कर हमारी संस्कृति का परिचय देते हैं। यहां इसका अर्थ यह नहीं कि अंग्रेजी में बड़ो का सम्मान नही होता पर हाँ, यह जरूर है हिंदी में इसकी  थोड़ी अधिकता है। कहने का तात्पर्य यह कि हिंदी स्वाभाव से ही एक सौम्य भाषा है, जबकि अंग्रेजी में इसकी तुलना थोड़ी आक्रामकता है।
         अब बात यह कि भाषा कैसे हमारे सोचने के तरीके को तय करती है। इसके दो सबसे बेहतरीन उदाहरण हमारी मीडिया और युद्ध के समय सेना को दिये जाने वाले संदेशो की भाषा है। गौर करे तो दिन भर में हमारी मीडिया द्वारा कई एक  तरह की खबरें दी जाती है। निश्चित है कि  खबरों की विधा अलग-अलग होती है और फलस्वरूप खबर की भाषा शैली में भी अंतर होता है। ऐसे में जब हमारी मीडिया किसी उल्लासपूर्ण खबर का  वाचन कर रही होती है तो उसकी भाषा में वह उल्लास दिखता है और उस खबर पर विचार के दौरान हमारे अन्दर भी उसी उल्लास का संचार होता है। वहीं किसी  दुखद घटना के  दौरान उसकी भाषा शैली से हमारे अंदर उसीके समान दुख का संचार होता है। ठीक इसी तरह युद्ध के दौरान जब सेना को संदेश दिये जाते है तो उसकी  भाषा शैली में एक उर्जा होती है जो उन्हें युद्ध के मैदान में आगे बढऩे के  लिए प्रेरित करती हैं। 
    हमारे व्यवहारिक जीवन में भी यह देखने को मिलता है कि  यदि किसी स्थान पर इस्तेमाल की जाने वाली भाषा सभ्रांत होती है तो वहां के लोगों के  व्यक्तिव और आचरण में एक सु-संस्कृति  झलकती है। वहीं इससे इतर यदि किसी स्थान की भाषा मर्यादित न हो तो वहां के लोगों के विचार और तौर-तरीको का भी गैर मर्यादित होना साफ दिखता है।

3 comments:

  1. I think, day by day... u are updating ur observation system. Great to know that... my best wishes are with you, soon u'll adapt and update others' systems too. :-)

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  2. धन्यवाद दिवाकर भाई !!
    धन्यवाद मयंक भाई !!

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