Thursday, April 7, 2011

ये साली जिंदगी: बोल्डनेस और गंभीरता का अनूठा मेल


इन दिनों बॉलीवुड में गंभीर फिल्में बनाने वाले निर्देशकों का रूख बदला है। पिछले दिनों मधुर भंडारकर जो अपनी लीक से हटकर और सार्थक सिनेमाशैली के लिए जाने जाते हैं ने अपनी गंभीर शैली से अलग “दिल तो बच्चा है जी” बनाई। इसी क्रम को आगे बढाते हुए अपनी फिल्मों से अलग पहचान बना चुके सुधीर मिश्रा जिनकी पिछली फिल्में “हजारों ख्वाहिशें ऐसी” और “इस रात की सुबह नहीं” भले ही बॉक्स ऑफिस पर टिक नहीं पाई, लेकिन इन फिल्मों को खास दर्शकवर्ग ने पसंद किया। इन फिल्मों ने समीक्षकों से भी जमकर वाहवाही लूटी।



फिलहाल, सुधीर की इस फिल्म को देखकर लगता है शायद उन्होंने इस बार बॉक्स ऑफिस की कसौटी पर खड़ा उतरने की चाह में कहीं न कहीं कोई समझौता किया है। वर्ना, दो अलग अलग स्टाइल की प्रेम कहानियों को जरूरत से ज्यादा हॉट सीन और डेढ़ दर्जन से ज्यादा चुंबन दृश्य को फिट किए बिना भी आसानी से कहा जा सकता था।



फिल्म की रिलीज से चंद दिन पहले सुधीर ने एक दैनिक से बातचीत के दौरान दबे स्वर में इस सच को कबूला कि “रोजी रोटी चलानी है, तो इंडस्ट्री में हजारों ख्वाहिशें.. और इस रात.. जैसी फिल्मों के दम पर टिका नहीं जा सकता, आपको ऐसा भी कुछ करना पड़ता है जो लोग चाहते है।” ऐसा नहीं है कि सुधीर की इस फिल्म में उनकी पिछली फिल्मों जैसा कुछ भी नहीं है, इस फिल्म की कसी हुई पटकथा और अपनी बात को कहने का सुधीर का अंदाजे बया कुछ ऐसा है, जो दर्शक को अंत तक बांधने का दम रखता है। वर्ना, अंडरवर्ल्ड और गुनाह की दुनिया से जुड़े दो किरदारों की प्रेम कहानी को सरल ढंग से भी कहा जा सकता था। लेकिन, फिल्म में हर पल कुछ ऐसा घटित होता है, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। फिल्म की शुरुआत में गोलियों और गालियों की बौछार के बीच कहानी को फ्लैश बैक का सहारा लेकर आगे बढ़ाने का मजेदार अंदाज, सुधीर जैसे निर्देशक ही कर सकते है। इस फिल्म की टैग लाइन है कुछ गोलियां मार डालती हैं, तो कुछ गोलियां जान बचाने के काम में आती हैं।

फिल्म की कहानी प्रीति (चित्रांगदा सिंह) और अरुण (इरफान खान) से शुरू होती है। अरूण, प्रीति को बहुत चाहता है, लेकिन अपने प्यार को चाहकर भी बयां नहीं कर पाता। प्रीति श्याम को चाहती है और हालात कुछ ऐसे बनते है कि अरुण को प्रीति से पहले श्याम को बचाना है। श्याम जल्दी ही एक बड़े नेता का दामाद बनने वाला है। वहीं कुलदीप (अरुणोदय सिंह) को भी एक काम पूरा करना है, फिरौती और भाईगीरी के धंधे में लगे कुलदीप का जेल आना जाना उसकी बीवी शांति (अदिति राव) को पसंद नहीं। कुलदीप को इस धंधे से छुड़ाने के लिए शांति उसे धमकी देती है कि वह इस धंधे को हमेशा के लिए छोड़ दे, वर्ना वह हमेशा के लिए उसका घर छोड़ कर चली जाएगी। कुलदीप को शक है कि शांति का किसी और से चक्कर है और इसलिए वह उसे हमेशा छोड़ना चाहती है। कुलदीप को मंत्री के होने वाले दामाद श्याम को किडनैप कर उससे मोटी रकम वसूलनी है। अरुण को जब पता चलता है कि प्रीति मुसीबत में है, तो वह उसे इस मुसीबत से निकालने का मकसद लेकर एकबार फिर उसकी जिंदगी में आता है। प्रीति और शांति की लव स्टोरी में अंडरवर्ल्ड का खूनी खेल, फिरौती वगैरह सब कुछ है, लेकिन फिल्म के आखिर तक हॉल में बैठा दर्शक क्लाइमैक्स का अंदाजा ही लगा पाता है।

फिल्म के अभिनय पक्ष को देखे तो कुलदीप के रोल में अरुणोदय पूरी तरह से फिट है। सुधीर मिश्रा की चहेती चित्रांगदा ने फिर साबित किया कि अपने रोल के साथ न्याय करना वह अच्छी तरह से जानती हैं। अदिति राव ने ऐक्टिंग से ज्यादा चुंबन दृश्य को करने पर ध्यान दिया और एक फिल्म में सबसे ज्यादा चुंबन का रेकॉर्ड अपने नाम किया। यशपाल अपने रोल के साथ न्याय किया है। सुशांत ने एक बार फिर वही किया जो इससे पहले भी कई बार कर चुके हैं, लेकिन ये भी सच है कि इस तरह के रोल में वो जंचते हैं।



सुधीर ने अपनी इमेज के विपरीत इस बार अपनी कहानी का अलग तरह का अंत किया है। वहीं, सिंपल कहानी को किस तरह से तोड़मरोड़ कर उसमें बॉक्स ऑफिस पर बिकाऊ मसालों को परोसा जाए, इस काम में भी सुधीर पीछे नहीं रहे। जरूरत से ज्यादा अश्लील गालियों और मिनटों तक लंबे चुंबन दृश्यों को दिखाना समझ से परे है।

संगीत पक्ष में फिल्म का टाइटिल गाना “ये साली जिंदगी” म्यूजिक चार्ट में अपनी जगह बना चुका है। वहीं तेज रफ्तार से चलती इस कहानी में गानों की ज्यादा गुंजाइश भी नहीं थी। अजय झींगरन का गाया मोरा पिया का फिल्मांकन बेहतरीन है और अजय की सुरीली आवाज ने इस गाने में जान डाल दी।



अगर आप लीक से हटकर, बोल्ड और कुछ ऐसा देखना चाहते है जो बहुत हद तक समाज में हो रहा है, तो ऐसे सच को देखने के लिए फिल्म देखी जा सकती है। वर्ना बोल्ड सीन और सेंसर की मेहरबानी से डबल मीनिंग डायलॉग और गालियों से मालामाल इस फिल्म में फैमिली और साफ सुथरी फिल्मों के शौकीनों के लिए कुछ भी नहीं। एक और बात जो इस फिल्म के संदर्भ में समझ से परे है कि सेंसर बोर्ड ने फिल्म के टाईटल में “साली” शब्द को ले अपने नाक-भौं सिकोड़ लिये लेकिन 21चुंबन दृश्यों को लेकर सेंसर बोर्ड में कोई कानाफूसी भी नहीं है।