'एक था टाइगर', पिछले कुछ समय में आई 'सलमान जॉनर' या यूं कहें कि 'सलमानदा फिल्मों' से अलग है। फिल्म सलमान खान की दमदार एंट्री के बाद अगले ही पल से स्लो हो जाती है। सलमान से एक्टिंग की अपेक्षा नहीं रहती, लेकिन आप उनसे भरपूर मनोरंजन की उम्मीद जरूर रखते हैं। फिल्म आपको शुरू से निराश करती है। फिल्म के दौरान आप यही सोचते हैं कि अब कुछ ऐसा होगा जो रोमांच लाएगा, लेकिन यह इंतजार लंबा खिचता है। हालांकि इस बीच सलमान अपने अंदाज में हास्य के पुट जरूर जोड़ते हैं जो गुदगुदाती तो है, लेकिन हंसी को ज्यादा देर तक बनाए रखने में सफल नहीं होती। इस तरह फिल्म के दौरान आप यह निर्णय करने लगते हैं कि फिल्म पकाउ है और बोर कर रही है। लेकिन तभी फिल्म बदलती है। फिल्म का 'सलमान जॉनर' में प्रवेश होता है। यहां से कहानी, निर्देशन, एक्शन और 'सलमानिया अंदाज' आपको अंत तक बंधे रखती है। अंत में फिल्म अपने बहुचर्चित सॉन्ग ट्रैक 'माशाल्लाह' से खुशनुमा अंदाज में खत्म होती है। फैंस गीत गुनगुनाते बाहर निकलते हैं और पूछने पर यही बताते हैं कि फिल्म अच्छी लगी। फिल्म के बोरियत पक्ष पर सवाल करने पर आपको सीधा जबाव मिलता है, 'सलमान हैं, तो फिल्म जबदस्त है।'
15 अगस्त 2003 को सतीश कौशिक निर्देशित और सलमान खान आभिनित फिल्म 'तेरे नाम' रीलीज हुई थी। इस फिल्म से रूपहले परदे पर पहले पारिवारिक और फिर दिलफेंक अंदाज वाला 'प्रेम' कॉलेज के रौबदार दादा सरीखे 'राधेमोहन' में परिणत हुआ था। राधे का किरदार रौबदार जरूर हो, लेकिन उसका प्रेम गहरा था। यानी 'प्रेम' की छवि यहां भी थी। कहने की जरूरत नहीं कि इस फिल्म ने उस समय सलमान के रूक से गए कॅरियर को नया आयाम दिया था। इस फिल्म से न सिर्फ सलमान के स्टारडम की वापसी हुई थी, बल्कि इस फिल्म में सलमान के अभिनय पक्ष को भी खासी सराहना भी मिली थी।
ठीक नौ साल बाद 15 अगस्त 2012 को कबीर खान निर्देशित फिल्म 'एक था टाइगर' रीलीज हुई। तारीख भले ही मेल खा रही हो, लेकिन समय और परिस्थितियां बदल चुकी हैं। आज सलमान स्टारडम के उस मुकाम पर पहुंच गए हैं, जहां उन्हें किसी 'तेरे नाम' की जरूरत नहीं है। 2009 में आई 'वॉन्टेड' और 2011 में 'दबंग', 'रेडी' और 'बॉडीगार्ड' जैसी फिल्मों ने भारतीय सिनेमाई संसार को पहली बार, पहले ही दिन से अकूत कमाई का रास्ता दिखाया। खास बात यह रही कि इस तरह की अप्रत्याशित सफलता के बावजूद इनमें से किसी भी फिल्म ने सलमान के अभिनेता-पक्ष को कोई विस्तार नहीं दिया। इतना ही नहीं इन फिल्मों में न तो कुछ नया था और न ही कुछ विषेष। फिर था क्या? यदि इस सवाल का जवाब ढूँढने निकले तो इन चारों में एक ही समानता थी और वह है खुद 'सलमान'। यानी 1989 में परदे पर प्रेम करने, बांटने और बाद के दिनों में प्रेम के गुरू तक बन जाने वाले सलमान ने 23 वर्षों के सिनेमाई सफर में अपने चाहने वालों के दिल में ऐसा 'प्रेम' जगाया कि सब 'प्रेम' में अंधे हो गए। एक ऐसा अंधा प्रेम जिसने परदे से कहानी, गीत-संगीत, निर्देशन जैसे तमाम पक्षों को धता बताते हुए सिनेमा का एक नया जॉनर ही विकसित कर दिया। आज यह जॉनर न सिर्फ फिल्म के सफलता की गारंटी बन गया है, बल्कि यह हर बार सफलता और कमाई के नए रिकॉर्ड बनाता है।
'एक था टाइगर' ने पहले ही दिन लगभग 32 करोड़ की कमाई की जो अब तक पहले दिन की सबसे ज्यादा कमाई है। फिल्म की एडवांस बुकिंग की कमाई साढ़े पांच करोड़ रूपए है जो एडवांस बुकिंग से कमाई का रिकॉर्ड है। इसके अलावा भारतीय सिनेमाई संसार की यह पहली फिल्म है, जिसे पहले दिन मल्टीप्लैक्स समेत तमाम स्क्रीन्स पर 95 से 100 फीसदी दर्शक मिले। यानी रिकॉर्ड और आंकड़ों का अंबार। सलमान इस साल दिसंबर में 'दबंग-2' और अगले ईद पर सोहेल खान निर्देशित 'शेरखान' लेकर आ रहे हैं, जिसे लेकर अभी से रिकॉर्ड के कयास लगने शुरू हो गएँ हैं।
ऐसे में फिलवक्त यही कहा जा सकता है कि सलमान भारतीय सिनेमा जगत के ऐसे स्टार हैं, जिनकी लाख आलोचना के बाद भी उनकी रियासत यानी उनके फैंस पर कोई असर नहीं होता। न तो सलमान और न ही उनके फैंस को फिल्म के हिट या पिट जाने की फिक्र होती है। इस नयी 'सलमान जॉनर' की फिल्मों को भले ही आलोचक सिरे से नकार रहे हों, लेकिन यह भी सच है कि उनकी पिछली फिल्मों ने सिनेमाई मनोरंजन की नई परिभाषा ही गढ़ दी है। ऐसे में यह भी संभव है कि सिनेमा के स्वर्णीम इतिहास के लेखन में आलोचक 'सलमान' शब्द से ही कन्नी काट लें, लेकिन ऐसा करना सिनेमा के उस खास दर्शक वर्ग पर आघात ही होगा, जो महीने के पैसे बचाकर अपने हीरो को बड़े परदे पर देखने की हसरत रखता है। कल को सलमान भले ही राजेश खन्ना, दिलीप कुमार, देवआनंद या अमिताभ बच्चन की तरह एक अभिनेता के रूप में न याद किए जाएं, लेकिन बतौर ट्रेंड सेटर और एक नए जॉनर को विकसित करने के लिए हमेशा याद किए जाएंगे।
एक कटु सत्य यह भी है कि सलमान की यह आंधी ज्यादा समय तक बॉक्स ऑफिस को बांध नहीं पाएगी, लेकिन यह जब तक चलेगी अपने मदमस्त चाल में रहेगी, यह तय है। ऐसे में दो ही बातें संभव है- एक की आप उनकी आलोचना करें और इस आंधी रूपी नशे के उतरने का इंतजार करें या दूसरा यह कि सिनेमा के इस नए मनोरंजन विधा का आनंद लें। खुद का मनोरंजन करें, जो सिनेमा के बहूदेश्यों में से एक है। यदि 'सलमान जॉनर' या 'सलमानिया अंदाज' में कहें, तो 'जस्ट चिलैक्स....'
(दिल्ली से प्रकाशित होने वाली फिल्म पत्रिका 'सतरंगी संसार' के सितम्बर अंक में प्रकाशित)